प्रधानमंत्री मोदी की प्राथमिक विद्यालय में पढ़ाई एवं मेडिटेशन की टेक्नीक। 


प्रधानमंत्री मोदी लेक्स फ्रिडमैन को बताते है कि जब मैं पढ़ता था, तो मेरे एक अध्यापक थे। वह हम बच्चों से कहते थे, एक को कहेंगे ऐसा है भाई तुम घर जाकर, घर से 10 चना के दाने ले आना। दूसरों को कहेंगे तुम चावल के 15 दाने ले आना। तीसरे को कहते थे कि मूंग के 21 दाने ले आना। ऐसे अलग-अलग आँकड़े भी अलग और वैरायटी भी अलग।  

तो वह बच्चा सोचता था, मुझे 10 लाने हैं, फिर घर जाकर गिनता था, तो उसको 10 के आगे याद आ जाता था। फिर उसको पता चलता था कि इसको चना कहते थे, फिर स्कूल में जाते थे, सब इकट्ठा कर देते थे, फिर बच्चों को कहते थे कि चलो भाई इसमें से 10 चना निकालो, 3 चना निकालो, 2 मूंग निकालो, 5 यह निकालो। तो गणित भी सीख लेते थे, चने की पहचान हो जाती थी, मूंग किसको कहते हैं पहचान हो जाए।

जब मैं स्कूल में था, तो मैंने देखा था कि मेरे एक टीचर का बड़ा ही इन्नोवेटिव आइडिया था।  उन्होंने पहले दिन कहा कि देखो भाई, यह डायरी मैं यहाँ रखता हूँ और सुबह जो जल्दी आएगा, वह डायरी में एक वाक्य लिखेगा, साथ में अपना नाम लिखेगा। फिर जो भी दूसरा आएगा उसको उसके अनुरूप ही दूसरा वाक्य लिखना पड़ेगा। तो मैं बहुत जल्दी स्कूल भाग करके जाता था, क्यों? तो मैं पहला वाक्य मैं लिखूँ। और मैंने लिखा कि आज सूर्योदय बहुत ही शानदार था, सूर्योदय ने मुझे बहुत ऊर्जा दी। ऐसा कुछ मैंने वाक्य लिख दिया, अपना नाम लिख दिया, फिर मेरे पीछे जो भी आएँगे, वो सूर्योदय पर ही कुछ न कुछ लिखना होता था। कुछ दिनों के बाद मैंने देखा कि मैं मेरी क्रिएटिविटी को इससे ज्यादा फायदा नहीं होगा। क्यों? क्योंकि मैं एक थॉट प्रोसेस लेकर के निकलता हूँ, और वह जाकर के मैं लिख देता हूँ। तो फिर मैंने तय किया कि नहीं, मैं लास्ट में जाऊँगा। तो उससे क्या हुआ कि औरों ने क्या लिखा है, वह मैं पढ़ता था, और फिर मेरा बेस्ट देने की कोशिश करता था। तो मेरी क्रिएटिविटी और बढ़ने लगी। 

तो कभी कुछ टीचर्स ऐसी छोटी-छोटी चीज़ें करते हैं, जो आपके जीवन को बहुत उपयोगी होती हैं। तो यह बिना बोझ के बच्चों को पढ़ाने की लर्निंग तकनीक को लाने का हमारी नई एजुकेशन पॉलिसी में इसका एक प्रयास किया गया है। 

मेडिटेशन के संदर्भ में ध्यान की बात करूं तो सबको लगेगा बहुत बड़ा बोझिल है। ये तो हम कर सकते ही नहीं, हम कोई आध्यात्मिक पुरुष तो हैं नहीं। फिर मैं उन्हें समझाता हूँ, भई तुम्हें बेध्‍यान होने की जो आदत है न, उससे मुक्ति लो। जैसे कि तुम क्लास में बैठे हो, लेकिन उस समय तुम्हारा चलता है भई खेल का पीरियड कब आएगा, मैदान में कब जाऊंगा, इसका मतलब तुम्हारा ध्यान नहीं है। अगर तुम यहाँ रखा दो, that is meditation. 

मुझे याद है जब मैं मेरी हिमालयन लाइफ थी, तो मुझे एक संत मिले। उन्होंने बड़ा अच्छा सा मुझे एक टेक्निक सिखाया था। हिमालय में झरने बहते रहते हैं छोटे-छोटे। तो उन्होंने सूखे पत्तल का एक टुकड़ा झरने के अंदर ऐसे लगा दिया। और नीचे जो बर्तन था, उसको उल्टा कर दिया, तो उसमें से टपक-टपक पानी गिरता था। तो उन्होंने मुझे सिखाया कि देखो तुम कुछ मत करो, सिर्फ इसी की आवाज़ सुनो, कोई और आवाज़ तुमको सुनाई नहीं देनी चाहिए। कितने ही पक्षी बोलते हों, कुछ भी बोलते हो, हवा का आवाज आती हो, कुछ नहीं, तुम इस पानी की जो बूंद गिरते हैं और वो मुझे वो सेट करके देते थे, तो मैं बैठता था। मेरा अनुभव था कि उसकी आवाज, उस पानी की बूंद उस बर्तन पर गिरना, उसकी जो आवाज थी, धीरे-धीरे-धीरे-धीरे मेरा माइंड ट्रेन होता गया। कोई मंत्र नहीं था, कोई परमात्मा नहीं था, कुछ नहीं था। उसको मैं कह सकता हूं नाद-ब्रह्म, उस नाद-ब्रह्म से नाता जुड़ना, जब ये मुझे कंसंट्रेशन सिखाया गया। मेरा वो धीरे-धीरे मेडिटेशन बन गया। 

कभी-कभी देखिए आपका बहुत ही अच्छा फाइव स्‍टार होटल है, बहुत ही ठाठ आपको चाहिए वैसा कमरा है, सारा डेकोरेशन बहुत बढ़िया है। लेकिन बाथरूम में पानी टपक रहा है। वह छोटी से आवाज आपकी हजारों रुपयों की किराए वाला बाथरूम आपके लिए बेकार बना देती है। तो कभी-कभार हम जीवन में अंतर्मन की यात्रा को निकट से हम देखते हैं न, तो इसकी वैल्यू समझ आती है कि कितना बड़ा बदलाव हो सकता है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लेक्स फ्रिडमैन को अपने बचपन के कुछ दिलचस्प किस्से सुनाए, जो उनकी शिक्षा और ध्यान केंद्रित करने की क्षमता को दर्शाते हैं।

प्राथमिक शिक्षा में नवीन तकनीक:

मोदी जी ने बताया कि उनके एक शिक्षक ने गणित और वस्तुओं की पहचान सिखाने के लिए एक अनोखा तरीका अपनाया। वे छात्रों को घर से अलग-अलग संख्या में अनाज के दाने लाने को कहते थे, जैसे 10 चने या 15 चावल। इससे बच्चे न केवल गिनती सीखते थे, बल्कि विभिन्न प्रकार के अनाजों को भी पहचानते थे।
एक अन्य शिक्षक ने कक्षा में एक डायरी रखी और छात्रों को हर सुबह एक वाक्य लिखने के लिए कहा। मोदी जी ने शुरू में सूर्योदय पर वाक्य लिखे, लेकिन बाद में उन्होंने दूसरों के वाक्य पढ़कर अपनी रचनात्मकता को बढ़ाने का निर्णय लिया।
मोदी जी का मानना है कि ऐसे शिक्षक बच्चों को बिना बोझ के ज्ञान प्राप्त करने में मदद करते हैं, और यह नई शिक्षा नीति का भी एक उद्देश्य है।


ध्यान केंद्रित करने की तकनीक:

मोदी जी ने ध्यान को बोझिल मानने वालों को समझाया कि ध्यान का अर्थ है, अपने मन को भटकने से रोकना। उन्होंने कहा कि कक्षा में बैठे हुए खेल के मैदान के बारे में सोचना ध्यान की कमी है।
अपने हिमालय प्रवास के दौरान, मोदी जी ने एक संत से ध्यान केंद्रित करने की एक विशेष तकनीक सीखी। संत ने उन्हें झरने के पास एक सूखे पत्ते पर गिरती पानी की बूंदों की आवाज सुनने के लिए कहा।
मोदी जी ने बताया कि इस तकनीक से उनका मन धीरे-धीरे प्रशिक्षित हो गया और वे ध्यान केंद्रित करने में सक्षम हो गए। उन्होंने इसे “नाद-ब्रह्म” से जुड़ना कहा।
मोदी जी का मानना है कि मन की शांति और ध्यान केंद्रित करने की क्षमता जीवन में बहुत महत्वपूर्ण है, और यह एक शानदार होटल के बाथरूम में टपकते पानी की तरह छोटी सी चीज भी बड़ी परेशानी का कारण बन सकती है।