(1) शैलपुत्री (हरड़): आयुर्वेद की प्रमुख औषधि – स्वास्थ्य और दीर्घायु के लिए
हरड़ (Terminalia chebula) एक महत्वपूर्ण आयुर्वेदिक औषधि है, जिसे देवी शैलपुत्री का स्वरूप माना जाता है। इसे आयुर्वेद में ‘पथया’, ‘हरीतिका’, ‘अमृता’, ‘हेमवती’, ‘कायस्थ’, ‘चेतकी’ और ‘श्रेयसी’ जैसे सात विभिन्न प्रकारों में वर्गीकृत किया गया है, प्रत्येक के अपने विशिष्ट गुण और उपयोग हैं।
मुख्य लाभ: यह विभिन्न प्रकार के रोगों के उपचार में अत्यंत लाभकारी है और इसे आयुर्वेद की ‘प्रधान औषधि’ माना जाता है, जो स्वास्थ्य को बनाए रखने और दीर्घायु को बढ़ावा देने में मदद करती है।
(2) ब्रह्मचारिणी (ब्राह्मी): मस्तिष्क स्वास्थ्य और स्मरण शक्ति वर्धक
ब्राह्मी (Bacopa monnieri) एक प्रसिद्ध जड़ी बूटी है जो आयुर्वेद में अपनी मेध्य (मस्तिष्क को तेज करने वाली) गुणों के लिए जानी जाती है। इसे देवी ब्रह्मचारिणी का प्रतीक माना जाता है। यह स्मरण शक्ति और एकाग्रता को बढ़ाने, रक्त विकारों को दूर करने और वाणी को मधुर बनाने में सहायक है। इसी कारण इसे सरस्वती भी कहा जाता है।
(3) चंद्रघंटा (चंदुसूर): मोटापा कम करने वाली प्रभावी औषधि
चंदुसूर (Lepidium sativum), जिसे कभी-कभी धनिये के समान माना जाता है, एक महत्वपूर्ण औषधीय पौधा है। इसे देवी चंद्रघंटा का प्रतिनिधित्व माना जाता है। यह मुख्य रूप से शरीर की अतिरिक्त चर्बी को कम करने में लाभकारी है, इसलिए इसे ‘चर्महंती’ भी कहा जाता है।
मुख्य लाभ: चंदुसूर प्रभावी रूप से मोटापे को कम करने में मदद करता है और स्वस्थ वजन प्रबंधन में सहायक है।
(4) कूष्मांडा (पेठा/कुम्हड़ा): पेट के स्वास्थ्य और मानसिक शांति के लिए
पेठा (Benincasa hispida) या कुम्हड़ा, जिससे स्वादिष्ट पेठा मिठाई बनती है, देवी कूष्मांडा का स्वरूप माना जाता है। यह रक्त विकारों को दूर करने और पेट को साफ रखने में मदद करता है। आयुर्वेद में इसे मानसिक रोगों के लिए अमृत के समान माना गया है। आजकल कृत्रिम मिठास से बने पेठे से बचने और घर पर बने पेठे का सेवन करने की सलाह दी जाती है।
मुख्य लाभ: पेठा रक्त को शुद्ध करने, पाचन क्रिया को सुधारने और मानसिक स्वास्थ्य को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
(5) स्कंदमाता (अलसी): वात, पित्त, कफ दोषों का निवारण
अलसी (Linum usitatissimum) में देवी स्कंदमाता का वास माना जाता है। यह आयुर्वेद में वात, पित्त और कफ जैसे तीनों दोषों को संतुलित करने वाली एक महत्वपूर्ण औषधि है। इसमें उच्च मात्रा में फाइबर होता है, इसलिए भोजन के बाद काले नमक के साथ भुनी हुई अलसी का सेवन सुबह और शाम करना स्वास्थ्य के लिए लाभकारी है। यह रक्त को भी शुद्ध करती है।
मुख्य लाभ: अलसी तीनों शारीरिक दोषों को संतुलित करती है, पाचन को सुधारती है, रक्त को शुद्ध करती है और समग्र स्वास्थ्य को बढ़ावा देती है।
(6) कात्यायनी (मोइया): कफ, पित्त और गले के रोगों से मुक्ति
देवी कात्यायनी को आयुर्वेद में अम्बा, अम्बालिका, अम्बिका और मोइया जैसे विभिन्न नामों से जाना जाता है। मोइया नामक औषधि विशेष रूप से कफ, पित्त और गले से संबंधित रोगों को दूर करने में प्रभावी है।
मुख्य लाभ: मोइया श्वसन तंत्र और गले के स्वास्थ्य के लिए लाभकारी है, साथ ही कफ और पित्त दोषों को संतुलित करने में मदद करती है।
(7) कालरात्रि (नागदौन): रोगों से लड़ने और मानसिक विकारों को दूर करने वाली औषधि
नागदौन (Artemisia absinthium) को देवी कालरात्रि का औषधि रूप माना जाता है। यह विभिन्न प्रकार के रोगों में लाभकारी है और विशेष रूप से मन और मस्तिष्क से संबंधित विकारों को दूर करने में मदद करती है। यह बवासीर (पाइल्स) के लिए भी एक रामबाण औषधि मानी जाती है, जिसे स्थानीय भाषा जबलपुर में ‘दूधी’ कहा जाता है।
मुख्य लाभ: नागदौन शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य दोनों के लिए फायदेमंद है, विभिन्न रोगों से लड़ने में मदद करता है और मन को शांत करता है।
(8) महागौरी (तुलसी): रक्त शोधक और हृदय स्वास्थ्य के लिए अमृत
तुलसी (Ocimum sanctum) सात प्रकार की होती है: सफेद तुलसी, काली तुलसी, मरूता, दवना, कुढेरक, अर्जक और षटपत्र। इन सभी प्रकारों को देवी महागौरी का स्वरूप माना जाता है। तुलसी रक्त को शुद्ध करने और हृदय रोगों को दूर करने में अत्यंत लाभकारी है। एकादशी के दिन को छोड़कर, इसका प्रतिदिन सुबह सेवन करना चाहिए।
मुख्य लाभ: तुलसी रक्त को शुद्ध करती है, हृदय को स्वस्थ रखती है और शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाती है।
(9) सिद्धिदात्री (शतावरी): बल, बुद्धि और प्रसूता स्वास्थ्य के लिए
शतावरी (Asparagus racemosus) दुर्गा का नौवां रूप सिद्धिदात्री है, जिसे नारायणी शतावरी भी कहा जाता है। यह शारीरिक बल, बुद्धि और विवेक के विकास के लिए अत्यंत उपयोगी है। विशेष रूप से, यह प्रसूता महिलाओं (ऑपरेशन के बाद या कम दूध आने वाली माताओं) के लिए एक रामबाण औषधि है और उन्हें इसका सेवन अवश्य करना चाहिए।
मुख्य लाभ: शतावरी शारीरिक शक्ति, मानसिक क्षमता और बुद्धि को बढ़ाती है, और प्रसव के बाद महिलाओं के स्वास्थ्य के लिए विशेष रूप से लाभकारी है।
आइए, इस नवरात्रि के पवित्र अवसर पर हम सभी मिलकर इन प्राकृतिक आयुर्वेदिक औषधियों के ज्ञान को जन-जन तक पहुंचाएं और इनके लाभों से सभी को अवगत कराएं। यह न केवल हमारी पारंपरिक चिकित्सा पद्धति को बढ़ावा देगा बल्कि लोगों को स्वस्थ और प्राकृतिक जीवन जीने के लिए भी प्रेरित करेगा।