अक्षय तृतीया, जिसे अखातीज़ के नाम से भी जाना जाता है, हिंदू पंचांग के अनुसार वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाई जाती है। “अक्षय” का अर्थ है — जो कभी न क्षय हो, यानी जो नष्ट न हो। यह दिन शुभता, समृद्धि और पुण्य के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है।
अक्षय तृतीया का धार्मिक महत्व:
त्रेता युग का आरंभ:
मान्यता है कि त्रेता युग की शुरुआत इसी पवित्र दिन से हुई थी, जिससे यह दिन युग परिवर्तन का प्रतीक भी बनता है।
भगवान परशुराम का जन्म:
भगवान विष्णु के छठे अवतार, परशुराम जी, का जन्म अक्षय तृतीया के दिन हुआ था। यह दिन परशुराम जयंती के रूप में भी मनाया जाता है।
अक्षय पात्र की प्राप्ति:
श्रीकृष्ण ने पांडवों को जो अक्षय पात्र प्रदान किया था — वह इसी दिन दिया गया था। यह पात्र कभी खाली नहीं होता था और संकट के समय अन्न का स्रोत बना।
युगादि तिथि का महत्व:
कुछ परंपराओं के अनुसार यह तिथि युग की शुरुआत का प्रतीक है और इसे विशेष रूप से पुण्यदायी माना जाता है।
अक्षय तृतीया पर किए जाने वाले शुभ कार्य:
सोना एवं धातु खरीदना:
इस दिन सोना, चांदी, तांबा जैसे धातुओं की खरीदारी शुभ मानी जाती है। यह समृद्धि और सौभाग्य का प्रतीक होता है।
नए कार्यों की शुरुआत:
लोग इस दिन विवाह, गृह प्रवेश, व्यवसाय आरंभ, संपत्ति की खरीद जैसे कार्य शुभ मुहूर्त में करते हैं।
दान-पुण्य करना:
अन्न, जल, वस्त्र, छाता, जूते, धन आदि का दान इस दिन विशेष फलदायी माना जाता है।
क्या अक्षय तृतीया पर सोना खरीदना शुभ होता है?
हाँ, इस दिन खरीदा गया सोना “अक्षय लक्ष्मी” का प्रतीक माना जाता है और आर्थिक स्थिरता का संकेत देता है।
अक्षय तृतीया पर क्या-क्या दान करें?
अन्न, जल, गुड़, चना, वस्त्र, छाता, पंखा, जूते आदि का दान अत्यंत पुण्यकारी होता है।
निष्कर्ष (H2):
अक्षय तृतीया केवल एक पर्व नहीं, बल्कि सनातन धर्म की उन परंपराओं का प्रतीक है जो सकारात्मकता, परोपकार और समृद्धि को बढ़ावा देती हैं। यह दिन हमें प्रेरणा देता है कि हम शुभ कार्यों में विश्वास रखें और सच्चे मन से दान-पुण्य करें, ताकि हमारा जीवन भी अक्षय फलदायी हो।