आज के डिजिटल युग में मोबाइल और ओटीटी (OTT) प्लेटफॉर्म्स हमारे जीवन का हिस्सा बन चुके हैं। लेकिन इनकी अति ने बच्चों और युवाओं पर गहरा मानसिक और सामाजिक प्रभाव डाला है। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने इस विषय पर गंभीर चिंता जताई है और सरकार तथा ओटीटी कंपनियों से जवाब मांगा है।

1. बच्चों में मोबाइल की लत: सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणी

  • सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आजकल माता-पिता खुद ही बच्चों को मोबाइल देकर उनकी लत बढ़ा रहे हैं।
  • जस्टिस संजय किशन कौल ने कहा: “जब माता-पिता ही नियंत्रण नहीं रख पा रहे हैं, तो बच्चों से क्या उम्मीद करें?”
  • यह टिप्पणी डिजिटल स्क्रीन पर बच्चों की निर्भरता को लेकर आई चिंता को उजागर करती है।

2. ओटीटी और सोशल मीडिया कंटेंट पर नियमन की मांग

  • कोर्ट में एक याचिका दायर की गई जिसमें अश्लील और आपत्तिजनक सामग्री पर रोक की मांग की गई।
  • नेटफ्लिक्स, अमेजन प्राइम, डिज्नी+ हॉटस्टार, एमएक्स प्लेयर, उल्लू आदि को नोटिस भेजा गया है।
  • कोर्ट ने स्पष्ट किया कि ऑनलाइन कंटेंट भी सेंसरशिप के दायरे में आना चाहिए।

3. जस्टिस गवई की टिप्पणी: “विकृति की हद तक पहुंचा कंटेंट”

  • जस्टिस बी. आर. गवई ने कहा कि ओटीटी प्लेटफॉर्म्स पर दिखाया जा रहा कंटेंट विकृति की हद पार कर चुका है।
  • उन्होंने पूछा कि क्या बिना सेंसर के इस तरह का कंटेंट दिखाना उचित है?

4. याचिकाकर्ता और समर्थन करने वाले संगठन

  • याचिका वजाहत हबीबुल्लाह, विष्णु शंकर जैन, संदीप नेवर और शालिनी पांडे द्वारा दायर की गई।
  • उनका कहना है कि ओटीटी प्लेटफॉर्म्स का कंटेंट बच्चों की मानसिकता को बिगाड़ रहा है।

5. केंद्र सरकार की प्रतिक्रिया

  • सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने बताया कि सरकार इस विषय पर विचार कर रही है।
  • कोर्ट ने फिलहाल सरकार को नीति निर्धारण का समय दिया है।

6. ओटीटी के बढ़ते उपयोग के आंकड़े

  • पिछले 6 वर्षों में ओटीटी यूजर्स 3 गुना बढ़े हैं और समय 2 गुना:
    • 2019: 17 करोड़ | औसत समय: 1 घंटे से कम
    • 2020: 25 करोड़ | 1.5 घंटे
    • 2021: 35 करोड़ | 2 घंटे
    • 2022: 45 करोड़ | 2 घंटे
    • 2024: 50 करोड़ | 2+ घंटे
  • 30% दर्शक 20 साल से कम उम्र के हैं।

निष्कर्ष

सुप्रीम कोर्ट की यह पहल समाज के लिए एक चेतावनी है कि अब समय आ गया है जब डिजिटल प्लेटफॉर्म्स के कंटेंट पर नियंत्रण और बच्चों के मोबाइल उपयोग पर सजगता जरूरी है। यदि सरकार और समाज ने समय रहते कदम नहीं उठाए, तो इसका प्रभाव आने वाली पीढ़ियों पर गहरा पड़ सकता है।